Supreme Court strictness on SYL

Editorial:एसवाईएल पर सर्वोच्च न्यायालय की सख्ती को समझे सरकार

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Supreme Court strictness on SYL

Supreme Court strictness on SYL सर्वोच्च न्यायालय की एसवाईएल नहर के संबंध में पंजाब सरकार को नसीहत हरियाणा के लिहाज से उपयुक्त है, लेकिन पंजाब सरकार इस पर कोई कदम लेगी, इसमें संशय है। सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी हालिया दिनों में सर्वाधिक सख्त टिप्पणी है कि आप इस मामले का समाधान करें वरना कोर्ट को कुछ करना पड़ेगा। निश्चित रूप से यह मामला समाधान की मांग कर रहा है, लेकिन राजनीति इसके आड़े आ रही है। अभी कुछ दिन पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने दोनों राज्यों को मिलकर बैठ कर इस मामले का हल निकालने को कहा था, इसके लिए एक कोर कमेटी बनाने की भी सलाह दी गई थी, हालांकि पंजाब सरकार की ओर से तब भी यही कहा गया था कि उसके पास किसी अन्य राज्य को देने के लिए एक बूंद पानी नहीं है।

वास्तव में बीते समय के दौरान पंजाब सरकारों का रवैया ऐसा रहा है कि वे संविधान का पालन करती नजर नहीं आई, उन्होंने केवल अपने राजनीतिक हितों को ही सर्वोपरि रखा। साल 2004 में तो शिअद सरकार ने एसवाईएल और इस संबंध में अन्य ऐसे फैसलों को विधानसभा में कानून पारित कर एकतरफा रद्द ही कर दिया था। एसवाईएल के लिए जिस जमीन पर नहर बननी थी, वह जमीन उनके मालिकों को लौटा दी। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय इस कार्रवाई को अवैध ठहरा चुका है।

एसवाईएल नहर के पानी को लेकर पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों की केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की अध्यक्षता में बैठक हो चुकी है। इसके अलावा दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री आपस में बैठक कर चुके हैं। केंद्रीय मंत्री अपने तौर पर दोनों राज्यों के साथ इस मसले को लेकर बैठक करते रहे हैं। लेकिन सारा मामला बैठकों तक ही सीमित रह जाता है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान हरियाणा को पानी देने के बजाय उलटे पानी की मांग कर चुके हैं।

दरअसल, एसवाईएल पंजाब के लिए नाक का सवाल है, बेशक पंजाब के मुख्यमंत्री यह कहते रहें कि राज्य के पास पानी ही नहीं है तो वह देगा कहां से। हालांकि यह तय है कि अगर पानी उपलब्ध हो तो भी इसकी बहुत कम संभावना है कि पंजाब इसे हरियाणा के साथ बांटेगा। मुख्यमंत्री भगवंत मान और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के बीच एसवाईएल को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर हुई बैठक में जिस प्रकार से पंजाब के मुख्यमंत्री की ओर से नई दलीलें पेश की गई थी, उनसे यह तय हो गया था कि पंजाब न सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से वास्ता रख रहा है और न ही केंद्र सरकार की मध्यस्थता से।

केंद्रीय मंत्री की अध्यक्षता में हुई बैठक भी बेनतीजा रहने के बाद अब सारा दारोमदार सर्वोच्च न्यायालय पर आ गया है। इस मामले पर दोनों राज्यों में राजनीति अपने चरम पर है। पंजाब के मुख्यमंत्री के किसी भी दावे को राज्य का विपक्ष स्वीकार करता नहीं दिखता, हालांकि कुछ नई बातें और जोड़ दी जाती हैं। इसी प्रकार से हरियाणा में भी विपक्ष इस बैठक के आयोजित किए जाने पर ही सवाल उठा रहा है। देश संविधान से चल रहा है, ऐसे में एक मामला जब सर्वोच्च न्यायालय की दहलीज पर चढ़ कर भी इस प्रकार अनसुलझा रह रहा है तो यह व्यवस्था पर बड़ा सवाल है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने फिर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को आधार के रूप में रखा है वहीं यह भी कहा है कि एसवाईएल का पानी हरियाणा के लिए जीवन रेखा है, वहीं मामले में अब टाइमलाइन तय होनी चाहिए। यानी हरियाणा अपने हक से पीछे नहीं हटेगा।

गौरतलब है कि इससे पहले भी सर्वोच्च न्यायालय स्पष्ट रूप से कह चुका है कि एसवाईएल के पानी पर हरियाणा का हक बनता है।  हालांकि मौजूदा समय में जिस प्रकार तेजी से घटनाक्रम बदल रहा है, उसमें पंजाब पर एसवाईएल को लेकर फैसला लेने का दबाव बन रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने अब केंद्र सरकार को भी निर्देशित करते हुए पंजाब में सर्वे कर इसकी रिपोर्ट देने को कहा है कि वहां नहर का कितना निर्माण हो चुका है, यानी वस्तुस्थिति क्या है। पंजाब का कहना है कि 36 साल पहले पानी का बंटवारा हुआ था, तब से लेकर अब तक पंजाब में पानी कम हो चुका है।

हालांकि अगर 36 साल पहले ही यह बंटवारा अमल में आ गया होता तो क्या आज इन बैठकों की जरूरत पड़ती। दरअसल, राजनीतिक दांव पेच में पंजाब के नेताओं ने न 36 साल पहले पानी देने की सोची थी और न ही अब सोच रहे हैं। वास्तव में मौजूदा हालात को सामने रखकर इस मसले का हल निकालना जरूरी है। पंजाब की अपनी जरूरत है, लेकिन उसे हरियाणा के हितों की भी परवाह करनी चाहिए। संघीय व्यवस्था की ताकत तभी बढ़ेगी, जब संविधान सम्मत तरीके से काम होगा। 

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